ओशो की तीन बेहतरीन शिक्षाप्रद कहानियां | Three Best Osho Stories

ओशो ने अपने जीवनकाल के दौरान जितनी भी कहानियां सुनाई हैं उनके पीछे की शिक्षा आज भी हम सभी के लिए बहुत काम की हैं। आज की इस पोस्ट में हम आपके लिए Three Best Osho Stories in Hindi Text लेकर आए हैं। ये प्रेरणादायक कहानियां मजेदार होने के साथ-साथ शिक्षाप्रद भी हैं। इन कहानियों को एक बार जरूर पढ़ें।

1- जीवन को कैसे जिएं (Osho Motivational Story)

एक बार अपने प्रवचन के दौरान ओशो ने एक नेता की बड़ी ही मजेदार कहानी सुनाई, जिसमें वो कहते हैं,

“एक बार, एक जनसभा के दौरान नेताजी भाषण दे रहे थे। वो भाषण उनके सेक्रेटरी ने लिख कर दिया था। सभा जैसे ही खत्म हुई, नेताजी अपने सेक्रेटरी पर बरस पड़े। बोले, “उल्लू के पट्ठे! तुमने मुझे इतना लंबा भाषण क्यों लिखकर दिया?

मैं जब भाषण दे रहा था तो लोगों ने कई बार हूटिंग करी। केले के छिलके फेंके, सड़े अंडे फेंके, जूते फेंके, आवाजें लगाईं, कोई कुत्ते की बोली में बोले, कोई बिल्ली की बोली में बोले; यह तुमने किस तरह का भाषण लिखा? और इतना लंबा भाषण कि मैं खत्म भी करना चाहूं तो वह खत्म ही ना हो।”

सेक्रेटरी ने पहले अपनी गलती के लिए माफी मांगी फिर बड़े शांत स्वर में बोला, “नेताजी, भाषण तो वह लंबा नहीं था।

हां, इतनी गलती जरूर मुझसे हो गयी कि मैंने भाषण की चार कॉपियां बनाई थी और गलती से चारों कॉपियां आपको दे दी।

आप ओरिजिनल वाले के साथ-साथ कार्बन कापियां भी पढ़ते चले गए। आप पिटे नहीं, यही बहुत बड़ी बात है!”

इस कहानी के माध्यम से ओशो समझाते हैं कि “लोग जिए जा रहे हैं, चले जा रहे हैं, बोले जा रहे हैं, हजार तरह के काम-धाम किए जा रहे हैं, मगर होश किसे है? ध्यान किसे है कि क्या कर रहे हैं, क्यों कर रहे हैं?”

ओशो द्वारा कही ये बात काफी हद तक सही भी है, यहां होश है किसे! हर कोई बिना सोचे उस भेड़ चाल में चल रहा है जो वह दूसरों को चलते हुए देख रहा है।

बहुत ही कम लोग ऐसे हैं जो अपने जीवन को अपने तरीके से जी रहे हैं। हम वही कर रहे हैं जो हमने अपने मां-बाप को करते हुए देखा है या जो समाज में शुरू से होता आया है।

हम इस जीवन को ना अलग तरह से जीना चाहते हैं और ना ही इसका आनंद ले पा रहे हैं। हमारी जिंदगी का मकसद सिर्फ इतना रह गया है, पढ़ो-लिखो, शादी करो, पैसे कमाओ, बच्चे पैदा करो और फिर मर जाओ।

अगर आप इस बात को गहराई से सोचें तो आप पाएंगे की ऐसी जीवन शैली में दुखों की संख्या ज्यादा और सुखों का अभाव है। इसलिए जिंदगी को इस तरह जीएं जिसमे आपको इस बात का एहसास को ही ये जीवन व्यर्थ नहीं है।

इसे खुशियों के साथ किया जा सकता है। समाज के बनाए रास्ते अनुसार चलना जरूरी नहीं है, खुद के रास्ते बनाने भी जरूरी हैं।

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2- जीवन का मोह (Story by Osho)

एक बार, एक युवक, साधु के पास गया और बोला, “अब बहुत हो गया, मैं इस जीवन को छोड़ देना चाहता हूं और सन्यास लेना चाहता हूं लेकिन मेरी पत्नी है, घर है, बच्चा है, मां बाप हैं। मुझे ऐसा लगता है की मेरे बिना मेरी पत्नी जी ना सकेगी, बच्चे रह नही पाएंगे। उनका प्रेम है मेरे प्रति। अब मैं क्या करूं?”

साधु बोला, “ऐसा कर, मैं तुझे सांस रोकने की एक विधि बताता हूं, कुछ दिन इसका अभ्यास कर फिर मैं तुझे आगे का रास्ता बताता हूं।”

युवक उस सांस रोकने के अभ्यास में लग गया, साधु की बताई विधि ऐसी थी कि अगर तुम थोड़ी देर के लिए सांस रोककर पड़ जाओ, तो मरे हुए मालूम पड़ो।

फिर साधु ने उसे घर जाने को कहा और बोला, “आज सुबह तू जाकर लेट जा और मर जा, फिर आगे सोचेंगे। मैं आता हूं तेरे पीछे।”

युवक घर गया और सांस रोकर लेट गया।

पत्नी की नजर पड़ी, वह घबरा गई, सांस रुकी हुई मालूम पड़ रही है। मर गया, मर गया शोर होने लगा। छाती पिटाई मच गयी, रोना— धोना हुआ, बच्चे चिल्लाने लगे, पत्नी चिल्लाने लगी कि मैं मर जाऊंगी, इनके बिना मैं नही रह पाऊंगी।

तभी वह साधु आया। द्वार पर आकर उसने आवाज लगाई। अंदर आया, उसने कहा, अरे! यह युवक मर गया? मुझे लगता है की अभी थोड़ा जान बाकी है ये बच सकता है अगर घर का कोई व्यक्ति इसके बदले मरने को राजी हो जाए तो, मैं इसके प्राण वापस ला सकता हूं।”

सन्नाटा हो गया। ना बेटा मरने को राजी, ना पत्नी मरने को राजी, ना मा मरने को राजी, ना बाप मरने को राजी।

साधु ने एक बार फिर कहा, ‘अभी भी समय है तुम लोगों में से अगर कोई राज़ी हो इसकी जगह मरने को तो ये बच जाएगा। अभी यह गया नहीं है, इसे वापस लाया जा सकता है। फिर से बुलाया जा सकता है। मगर किसी को तो इसे बदले जाना ही पड़ेगा।

उधर से पत्नी बोली, “अब यह तो मर ही गया, हमको और क्यों मारते हो! अब जो हो गया सो हो गया।”

साधु ने चुपके से युवक से कहा, “अब तू अपनी सांस रकना छोड़ और उठ। सब कुछ तूने सुन ही लिया है। बता, अब तेरा क्या खयाल है?”

युवक बोला, “जब ये लोग कहते हैं कि मर ही गए और इनमें से कोई मेरे बदले मरने को राजी नहीं,तो मैं मर ही गया। मैं आपके पीछे आता हूं।”

अब उसे रोकना भी मुश्किल हुआ। पत्नी के पास कहने को कोई कारण भी ना बचा।

Osho कहते है, “यह जीवन सिर्फ मोह से भरा है, तुम जिसे लगाव कहते हो वो सब मोह के ताने—बाने हैं, उनको जरा गौर से तो देखो, पानी के बबूले हैं। यहां किसी का साथी नहीं, कोई यहां किसी का संगी नहीं। तुम अपनी ही आत्मा का भरोसा नहीं कर सकते और किसका भरोसा करोगे!”

ये कहानी सिखाती है कि जिनसे हम अत्यधिक प्रेम और लगाव महसूस करते हैं, वे संबंध केवल बाहरी हैं, और जब कठिनाई या मृत्यु का सामना करना पड़ता है, तो हर व्यक्ति सबसे पहले अपनी सुरक्षा और जीवन की चिंता करता है।

इस जीवन में कभी-कभी ऐसी समस्याएं भी आ जाती हैं जिस वक्त हमारे अपने भी हमारा साथ छोड़ देते हैं। ऐसी स्थिति में हमें सबसे ज्यादा जरूरत होती है अपने विश्वास की और खुद पर भरोसे की। मुसीबत के समय आपका यदि कोई सच्चा साथी है तो वो आप खुद ही हैं। लोग कब और कहां आपका साथ छोड़ दें ये कहा नहीं जा सकता।”

3- जीवन का अर्थ (Osho Stories in Hindi)

एक प्रवचन के दौरान ओशो ने अपने जीवन से जुड़ा एक किस्सा सुनाया, जिसमें वो कहते हैं, ” जब मैं छोटा था तो हर किसी से पूछता था कि जीवन का अर्थ क्या है?

तो वो लोग कहते, ‘जब तुम बड़े हो जाओगे, सब समझ में आ जाएगा।’ तो जिन-जिन लोगों ने मुझसे ऐसा कहा था, जब मैं बड़ा हो गया, मैं उनसे फिर यही पूछता, ‘अब तो मैं बड़ा भी हो गया हूं, अब बताओ इस जीवन का अर्थ क्या है?’

तो वो कहते, ‘तुम भी हद करते हो! आमतौर पर जब लोग बड़े हो जाते हैं फिर वो यह बात नहीं पूछते। क्योंकि तब तक वो ये समझ जाते हैं कि कहां का अर्थ, कहां का क्या! जीवन की धमाचौकड़ी में सब भूल ही जाते हैं कि जीवन का अर्थ क्या है।’ फिर उन्होंने कहा, ‘हमें पता नहीं है।’

मैंने उनसे फिर कहा, ‘तो तुमने ये बात पहले ही क्यों नहीं कह दी कि तुम्हें नहीं पता? तुमने जब ये कहा था कि बड़े हो जाओगे तो पता चल जाएगा, तभी मैं ये समझ गया था कि तुम्हें भी नहीं पता है, बस टाल रहे हो।

तुम्हें ये बात स्वीकार करने में कठिनाई है कि मुझे मालूम नहीं। लेकिन सत्य के खोजी को तथ्यों को स्वीकार करना आना चाहिए। अपने अज्ञान की स्वीकृति ही ज्ञान की तरफ पहला चरण है।

ओशो की कही ये बात हमें सिखाती है कि मानव जीवन के अर्थ की खोज केवल तब संभव है जब हम अपने अज्ञान को स्वीकार करना सीखते हैं।

अक्सर लोग जीवन के असली अर्थ से अनजान होते हैं और अपने अज्ञान को स्वीकारने में कठिनाई महसूस करते हैं। वे इसे टालते रहते हैं, यह सोचते हुए कि समय के साथ उन्हें सब समझ में आ जाएगा। लेकिन समय के साथ वह जीवन की उलझनों में इतना फस जाते हैं की वो ये भूल ही जाते हैं की जीवन सही अर्थ है क्या। असल में, सत्य के खोजी को सबसे पहले यह स्वीकार करना चाहिए कि वह क्या नहीं जानता।

अज्ञान की स्वीकृति ही ज्ञान की ओर पहला कदम है। जब हम अपने अज्ञान को स्वीकार कर लेते हैं, तभी हम जीवन के गहरे अर्थ की ओर बढ़ सकते हैं। जीवन के अर्थ को सही रूप में जान पाना हर किसी के बस की बात नही है और ना ही हर इंसान इसे जानना चाहता है।

हम एक ऐसी जिंदगी जी रहे हैं जो समाज को देखकर आगे बढ़ती है जिसमें पढ़ना, लिखना, शादी करना, बच्चे पैदा करना और फिर मर जाना, बस यही शामिल है। लगभग हम सभी के लिए जीवन का अर्थ यही है। लेकिन बहुत से लोग ऐसे होते हैं जो इन सब से परे जीवन को सोचते हैं और उस सत्य को खोजने के लिए ज्ञान की तरफ बढ़ते हैं।

आशा करता हूं ओशो की कहानियां आपको पसंद आएं और आप इनसे कुछ अच्छा सीखें। ऐसी ही और भी कहानियां पढ़ने के लिए इस ब्लॉग को फॉलो जरूर करें।

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