ओशो की 5 मजेदार कहानियां – Osho Stories in Hindi

आज की इस पोस्ट में हम आपके लिए ओशो की चार बहुत ही मजेदार और शिक्षा से भरी कहानियां लेकर आए हैं। ओशो की कहानियों को पढ़कर आपको जीवन के कुछ महत्वपूर्ण सबक सीखने को मिलेंगे।

ओशो की 5 मजेदार कहानियां (Osho Stories in Hindi)

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1- 100 ऊंटों की कहानी

अंधेरी रात थी। आधी रात के समय एक बड़ा काफिला, जिसमें सौ ऊंट थे, एक रेगिस्तानी सराय में ठहरा। यात्री और ऊंट दोनों थके हुए थे। काफिले के मालिक ने खूंटियां गाड़कर ऊंटों को बांधने की व्यवस्था की ताकि वे रातभर आराम कर सकें। लेकिन समस्या यह थी कि खूंटियां सिर्फ निन्यानवे थीं, जबकि ऊंट सौ थे।

काफिले के मालिक ने सोचा कि एक ऊंट को बिना बांधे छोड़ना सुरक्षित नहीं होगा। उसने सराय के बूढ़े मालिक से मदद मांगी। बूढ़े ने कहा, “हमारे पास ना तो खूंटियां हैं और ना ही रस्सियां। लेकिन तुम ऐसा करो- झूठी खूंटी गाड़ दो, ऊंट को झूठी रस्सी से बांध दो और उससे कहो कि सो जाए। ऊंट सो जाएगा।”

काफिले का मालिक यह सुनकर चकित रह गया। उसने कहा, “खूंटी और रस्सी ही नहीं हैं तो गाड़ें और बांधें कैसे?”

बूढ़े ने मुस्कुराते हुए कहा, “ऊंट को असली खूंटी-रस्सी की जरूरत नहीं है। तुम एक झूठी खूंटी ही ठोक दो और तुम एक झूठी रस्सी ही ऊंट के गले पर बांधो और उससे कहो कि वह सो जाए।
वह तो आदी है इस सब का। तुम बस खूंटी गाड़ने का नाटक करो, रस्सी बांधने का अभिनय करो।”

कोई रास्ता ना था, उन्हें विश्वास तो ना आया कि यह बात हो सकेगी। फिर भी ऊंटों के मालिक ने वैसा ही किया। उसने एक झूठी खूंटी ठोकी, रस्सी बांधने का नाटक किया और ऊंट से कहा, “सो जाओ।” ऊंट आराम से बैठ गया और सो गया।

सुबह जब काफिला रवाना होने लगा, निन्यानवे ऊंटों की खूंटियां उखाड़ी गईं, रस्सियां खोली गईं। लेकिन सौवां ऊंट टस से मस नहीं हुआ। वह अपनी जगह से हिला ही नहीं, मजे से बैठा रहा।

काफिले का मालिक परेशान हो गया वो उस बूढ़े सराय वाले के पास गया और बोला, “तुमने कौन सा मंत्र कर दिया है, हमारा ऊंट तो जमीन में बंधा रह गया, वह उठ ही नहीं रहा? सारे ऊंट उठ कर जाने को तैयार हो गए हैं, लेकिन सौवां ऊंट जमीन नहीं छोड़ता है, बैठा हुआ है।

बूढ़ा बोला, “तुमने उसकी खूंटी नहीं उखाड़ी, रस्सी नहीं खोली, इसलिए वह उठ नहीं रहा।”

मालिक ने कहा, “पर वह तो झूठी थी!”

वो बोला, “तुम्हारे लिए झूठी थी, पर ऊंट के लिए असली। जाओ, खूंटी उखाड़ो, रस्सी खोलो। तब वह उठेगा।”

मालिक ने वैसा ही किया। झूठी खूंटी उखाड़ी और झूठी रस्सी खोली। ऊंट उठ खड़ा हुआ और काफिले के साथ चल दिया।

ओशो की ये कहानी हमें सीखाती है कि, “मनुष्य भी उन्हीं झूठी खूंटियों और रस्सियों से बंधा हुआ है, जिनका कोई अस्तित्व नहीं। हमारी आदतें, परंपराएं, डर और अज्ञान हमें बांधकर रखते हैं। लेकिन जैसे ही हम इन खूंटियों और रस्सियों को पहचानते हैं, उनकी पकड़ खत्म हो जाती है। मनुष्य को यह समझना होगा कि वह स्वतंत्र है। उसकी परतंत्रता केवल एक भ्रम है। इन झूठी खूंटियों और रस्सियों को तोड़ते ही वह ऊंचाइयों में उड़ान भर सकता है और अपने परमात्मा को पा सकता है।”

2- ओशो से मिलने आया एक शराबी (osho story)

ओशो द्वारा सुनाई एक कहानी है जिसमें वो कहते हैं, “एक दिन एक शराबी मेरे पास आया। उसकी आंखों में चिंता और चेहरे पर थकान थी। उसने मुझसे कहा, “चार दिन हो गए, पर शराब छूटती ही नहीं। बहुत कोशिश की, लेकिन असफल रहा।”

मैंने उसकी बात सुनी और मुस्कुराते हुए कहा, “तू फिक्र छोड़ दे। छोड़ना भी क्या है? तू शराब ही पीता है, किसी का खून तो नहीं पी रहा!”

वह हैरान हो गया। थोड़ा ठिठका और बोला, “लेकिन शराब तो बुरी चीज है। मेरी जिंदगी खराब कर रही है।”

मैंने कहा, “रहने दे, यह बुरी है। लेकिन बुराई पर ध्यान मत दे। जीवन के नियम बड़े जटिल हैं। जिस चीज पर ध्यान देते हो, उसी का प्रभाव बढ़ता जाता है। अगर तू शराब छोड़ने की चिंता में ही डूबा रहेगा, तो तेरी ऊर्जा उसी में उलझी रहेगी।”

मैंने उसे समझाया, “फिक्र मत कर। शराब पर ध्यान मत दे, अपने ध्यान पर ध्यान दे। अपनी ऊर्जा को ध्यान की तरफ मोड़। धीरे-धीरे तू पाएगा कि शराब अपने आप छूट जाएगी। जब यह बदलाव होगा, तो तुझे पता भी नहीं चलेगा। अगर इसे जबरन छोड़ना पड़े, तो बात अधूरी रह जाती है। छोड़ने की कोशिश में एक घाव बन जाता है, और वह डर सदा के लिए मन में बसा रहता है।”

मैंने कहा, “छोड़ने की जगह छूटने पर ध्यान दे। जब तुझे कुछ महान, कुछ विराट मिलेगा, तो शराब अपने आप छूट जाएगी। यह संसार तेरे लिए बाधा नहीं है। तुझे सिर्फ अपनी दिशा बदलनी है। जब तू मेरे पास आया है, तो इसका मतलब है कि तू बदलाव चाहता है। मैं वहीं से शुरू करता हूं, जहां तू है। तुम तामसी हो, कि राजसी या सात्विक, कुछ अंतर नहीं पड़ता। तुम जहां हो, मैं वहीं से काम शुरू करता हूं। मेरे द्वार सबके लिए खुले हैं।”

ओशो इस बात पर जोर देते हैं की किसी आदत या बुराई को जबरदस्ती छोड़ने से मन में घाव रह जाता है। असली परिवर्तन तब होता है जब वह आदत स्वयं छूट जाए। जब जीवन में कुछ बड़ा और सार्थक मिलता है, तो पुरानी आदतें स्वतः ही दूर हो जाती हैं। संसार में कुछ भी ऐसा नहीं है जो हमें परमात्मा या आत्मज्ञान की ओर जाने से रोक सके। वास्तविक बाधा केवल हमारे अंदर होती है। आत्मज्ञान की राह में जबरदस्ती का कोई स्थान नहीं है। जब मन महानता को छूता है, तो हर बुराई स्वतः गिर जाती है।

3- एक धार्मिक व्यक्ति (ओशो की कहानी)

इस स्टोरी में ओशो कहते हैं, “मैंने सुना है की अकबर के समय में एक धार्मिक व्यक्ति तीर्थ यात्रा पर निकला। उन दिनों यात्रा करना ना केवल कठिन बल्कि खतरनाक भी हुआ करता था। वह व्यक्ति अकेला था, उसका परिवार या संतान भी नहीं थी, लेकिन उसके पास काफी संपत्ति थी। जैसे धन, जायदाद, जमीन ये सब।

यात्रा में जाने से पहले वो अपनी संपत्ति किसी विश्वसनीय व्यक्ति को सौंप कर जाना चाहता था इसके लिए उसने अपना सबकुछ अपने एक मित्र को दे दिया। उसने अपने मित्र से कहा, ‘अगर मैं यात्रा से वापस लौट आया, तो तुम ये सब मुझे वापस दे देना देना। लेकिन अगर मैं ना आ सकूं, तो इसका जो भी सदुपयोग बन सके कर लेना। ‘

वह व्यक्ति मानसरोवर की कठिन यात्रा पर निकल पड़ा। पुराने समय में लंबी तीर्थ यात्राओं में अक्सर लोग लौट नहीं पाते थे। परंतु भाग्यवश, वह व्यक्ति जीवित वापस लौट आया। जब वह अपने मित्र के पास अपनी संपत्ति लेने गया, तो मित्र ने संपत्ति लौटाने से इनकार कर दिया। उसने कहा, ‘तुमने मेरे पास कोई संपत्ति रखी ही नहीं। तुम्हारा दिमाग तो खराब नहीं हो गया?

इस बात का कोई गवाह भी नहीं था की संपत्ति मित्र को ही दी है, तो सारा मामला अकबर के दरबार तक पहुंचा। अकबर ने बीरबल को इस समस्या का हल निकालने को कहा।

बीरबल ने उस व्यक्ति से पूछा, ‘क्या कोई गवाह है जो यह बात साबित कर सके?’
वो बोला, ‘कोई गवाह तो नहीं है। लेकिन एक वृक्ष है, जिसके नीचे मैं अपनी संपत्ति इस मित्र के पास छोड़कर गया था।’

बीरबल ने कहा, ‘तब तो मामला सुलझ सकता है। जाओ, उस वृक्ष से कहो कि उसे दरबार में गवाही के लिए बुलाया गया है।’
वह व्यक्ति सोचने लगा कि यह तो पागलपन का मामला है, लेकिन कोई और उपाय भी नहीं है। उसने कहा, मैं जाता हूं वृक्ष से प्रार्थना करूंगा। वह वृक्ष को लाने के लिए निकल पड़ा।

दूसरी ओर, जिस मित्र के पास संपत्ति रखी थी, वह दरबार में ही बैठा रहा। काफी समय बीत गया, तो बीरबल ने कहा, ‘बहुत समय हो गया, वह व्यक्ति वृक्ष को लेकर आया क्यूं नहीं?’

ये सुनकर मित्र बोल पड़ा, ‘जनाब, वह वृक्ष काफी दूर है, इसलिए उसे लौटने में समय लग रहा होगा।’

बीरबल मुस्कुराया और कहा, ‘मामला हल हो गया। तुमने रुपए लिए हैं, अन्यथा तुम्हें उस वृक्ष का पता कैसे चला कि वह यहां से कितनी दूर है।

इस कहानी के जरिए ओशो समझाते हैं कि सत्य और झूठ को पहचानने के लिए परोक्ष संकेतों की आवश्यकता होती है। हमारे जीवन में भी कई बार सीधा समाधान संभव नहीं होता। तब हमें अपने भीतर की सूक्ष्म समझ और जागरूकता का सहारा लेना पड़ता है। जैसे ही हम किसी ज्ञानी पुरुष की संगति में आते हैं, हमें अपनी गलतियों का अहसास होने लगता है। उनकी उपस्थिति हमारे भीतर सही और गलत का बोध जागृत करती है। इसलिए, जीवन में सत्य को समझने और स्वीकार करने के लिए आत्म-जागृति और परोक्ष संकेतों पर ध्यान देना आवश्यक है।

4- ओशो ने सुनाई एक पंडित और कसाई की कहानी

ओशो की एक कहानी है जिसमें वो कहते हैं, “एक बार एक पंडित रास्ते से गुजर रहा था, सीधा-सादा आदमी था, अपने काम से कहीं जा रहा था।

अचानक एक कसाई भागता हूवा आया, वह अपनी बकरी को ढूंढ रहा था, जो उसके हाथ से छूटकर भाग गई थी।

वह पंडित से पूछता है, “यहां से अभी अभी मेरी बकरी भागी है, क्या तुमने उसे देखा?”

पंडित उस व्यक्ति को गौर से देखता है, मालूम पड़ता है, कसाई है। आंखें बताती हैं, हाथ की कुल्हाड़ी बताती है, खून के धब्बे बताते हैं।

वह व्यक्ति फिर पूछता है, बकरी यहां से गई है? किस तरफ गई है?

पंडित बड़ी मुश्किल में पड़ गया। उसने शास्त्रों में पढ़ा है कि झूठ बोलना निषिद्ध कर्म है।

लेकिन सच बोले तो कसाई बकरी को पकड़ लेगा और हत्या करेगा। तो मैं भी भागीदार हो जाऊंगा।
पशु हत्या निषिद्ध है, सभी हत्याएं निषिद्ध हैं, फिर हत्या में भागीदार होना भी निषिद्ध है। शास्त्र यही कहते हैं।

अब अगर झूठ बोलूं, तो भी निषिद्ध कर्म हो जाएगा; सच बोलूं तो भी निषिद्ध कर्म होकर रहेगा।

कसाई ने फिर कहा, “पता हो, तो बोलो; नहीं पता हो, तो कहो कि मुझे नहीं पता। मैं किसी और से पूछूं?”

उस पंडित ने कहा, “मैं बहुत मुश्किल में पड़ गया हूं। जरा मुझे सोचने दो। निषिद्ध कर्मों का सवाल है।”

कसाई बोला, “अरे पागल, मैं पूछता हूं, मेरी बकरी कहां है? निषिद्ध कर्मों का कोई सवाल नहीं है। सिर्फ बकरी का सवाल है। बकरी किस तरफ गई है? तू जानता हो, देखा हो, तो बोल! नहीं जानता हो, ना देखा हो, तो वैसा बोल!

पंडित ने अंत में अपने विवेक और अंतरात्मा की आवाज सुनी। उसने कसाई से कहा, “मुझे नहीं पता कि तुम्हारी बकरी किधर गई है।” यह कहकर वह पंडित वहां से चला गया।

कसाई निराश होकर दूसरी दिशा में चला गया, और बकरी सुरक्षित अपने रास्ते पर आगे बढ़ गई।

पंडित को अहसास हुआ कि सही और गलत का निर्णय हमेशा शास्त्रों के आधार पर नहीं किया जा सकता। हर परिस्थिति में मानवता, करुणा, और विवेक से काम लेना चाहिए।

ओशो की ये कहानी सीखाती है कि, “जिंदगी जटिल है। इसमें चीजें ऐसी नहीं होतीं, जैसी शास्त्रों में होती हैं। शास्त्र सरल हैं, हालांकि लोग शास्त्रों को जटिल समझते हैं और जिंदगी को सरल समझते हैं। शास्त्र बिलकुल सरल हैं; जिंदगी बहुत जटिल है। क्योंकि शास्त्रों के सब सवाल निर्णीत सवाल हैं; जिंदगी के सब सवाल अनिर्णीत हैं। यहां तुरंत तय करना पड़ता है कि क्या करूं?और ऐसे क्षण रोज आ जाते हैं, जब कोई शास्त्र साथ नहीं देता, स्वयं ही निर्णय करना पड़ता है।”

5- अकल बड़ी या भैंस (ओशो प्रवचन कहानी)

एक बार अपने प्रवचन के दौरान ओशो ने बताया कि मेरे दादाजी अक्सर मुझसे और दूसरों से पूछा करते थे की अकल बड़ी या भैंस।

एक दिन यही सवाल वह मुझसे पूछ बैठे और मैंने जवाब दिया, “भैंस।”

उन्होंने पूछा, “क्यूं?”

मैंने कहा, “क्योंकि ऐसे सवाल भैंस कभी नहीं पूछती। ये खुजली तुम्हारी अकल में ही चलती है। मैं कई भैंसों के सामने कई घंटे खड़ा रहा। कोई भैंस नही पूछती की अक्ल बड़ी या भैंस। भैंस को तो पता ही है की हम बड़े हैं फिर क्या पूछना।”

फिर उन्होंने कभी ये सवाल नही पूछा लेकिन मैं कई दफा बोलता था की “पूछो ना, अक्ल बड़ी की भैंस।”

इस कहानी के जरिए Osho यह समझाते हैं कि इस तरह के सवाल सिर्फ बेवकूफों द्वारा पूछे जाते हैं। असली बुद्धिमत्ता वह है जो सवालों की जटिलता में ना उलझे, बल्कि जीवन की सच्चाई को सहज रूप से स्वीकार करे। यानी, अक्ल वही है जो आपको सही समझ और शांति दे, ना कि उलझनों में डाले।

आशा करता हूं कि Osho stories in Hindi के जरिए आपको कुछ अच्छा सीखने को मिला हो। ऐसी ही और भी कहानियां पढ़ने के लिए इस blog को follow ज़रूर करें।

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