Osho Story Hindi: हर किसी के मन में कभी ना कभी ये सवाल जरूर उठता है कि “जो मैं कर रहा हूँ, ये मैं ही कर रहा हूँ या मेरा ऐसा करना पहले से तय था।” कहने का अर्थ है कि जो हम करते हैं क्या वो पहले से होना तय है, क्या हमारा अपने कर्मों पर कोई काबू नहीं होता।
दोस्तों इस बात को मानना बड़ा मुश्किल है कि जो हम करते हैं वो हमसे करवाया जाता है या नियति में ऐसा होना तय है। अगर हम ये सोचकर कर चलें कि हमारा अपने कर्मों पर कोई काबू नहीं होता और जो होना है या जो हमने करना है वो वैसे ही होगा जैसा पहले से तय है, तो शायद हमारा जीवन बहुत कठिन हो जाएगा। हम ये सोचकर इस जीवन का रस खो देंगे कि जो होना है वो तो होकर रहेगा फिर कुछ करना ही क्यों।
आज इस Osho story के जरिए हम आपको इसी बात की शिक्षा देंगे कि जो होता है या जो हम करते हैं वो किस वजह से होता है। Osho द्वारा इस बात को एक बहुत ही मजेदार कहानी से समझाया गया है। तो आइए पढ़ते हैं ओशो की कहानी।
Osho story in Hindi – ईश्वर की इच्छा
ओशो की एक कहानी है, जिसमें वह कहते हैं, “बहुत समय पहले की बात है, गंगा नदी के किनारे एक पीपल का पेड़ था। पहाड़ों से उतरती गंगा पूरे वेग से बह रही थी। अचानक उस पीपल के पेड़ से दो पत्ते नदी में गिर गए।
पहला पत्ता आड़ा गिरा और दूसरा पत्ता सीधा गिरा।
जो पत्ता आड़ा गिरा, वह अड़ गया और गंगा से कहने लगा, “आज चाहे कुछ भी हो जाए मैं इस नदी के पानी को रोक के ही रहूंगा, चाहे मेरी जान ही क्यों न चली जाए, आज मैं इस नदी को आगे नहीं बढ़ने दूंगा।”
वह ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगा, “रुक जा गंगा! अब तू और आगे नहीं बढ़ सकती, मैं आज तुझे यहीं रोक दूंगा!”
पर गंगा तो अपने वेग से बहती ही जा रही थी, उसे तो इस बात का ज़रा भी अंदाजा नहीं था कि कोई पत्ता उसे रोकने की कोशिश कर रहा है। लेकिन पत्ता लगातार संघर्ष करता रहा, वह इस बात से अंजान था कि बिना लड़े भी वह उसी स्थान पर पहुंचेगा, जहाँ वह लड़कर, थककर, और हारकर पहुंचेगा। मगर अपनी इस अब, तब की पीड़ा से अंजान वह पत्ता अपनी कोशिशों में लगा रहा।
वहीं दूसरा पत्ता, जो गंगा में सीधा गिरा था, वह उसके प्रवाह के साथ मजे से बहता चला जा रहा था। अपनी मस्ती में वह बोला, “चल गंगा, आज मैं तुझे तेरी मंजिल तक पहुंचाकर ही दम लूंगा। चाहे कुछ भी हो जाए, मैं तेरे मार्ग में कोई भी रुकावट नहीं आने दूंगा और तुझे सागर तक ले जाऊंगा।”
गंगा को इस पत्ते की भी कोई खबर नहीं थी, वह तो हमेशा की तरह ही अपनी ही धुन में सागर की ओर बढ़ती जा रही थी। परंतु पत्ता आनंदित था, उसे ऐसा लग रहा था जैसे वही गंगा को अपने साथ बहा रहा है।
आड़ा पत्ता और सीधा पत्ता दोनों ही नहीं जानते थे कि चाहे वह गंगा का साथ दें या उसका विरोध करें, गंगा तो अपने रास्ते पर बढ़ती ही जाएगी। वो ना ही इसे रोक सकते हैं और ना ही उसे कहीं पहुंचा सकते हैं। फर्क, सिर्फ इस बात का था कि एक पत्ते का संघर्ष उसकी पीड़ा का कारण बन रहा था, जबकि दूसरा बहते हुए आनंद का अनुभव कर रहा था।
इस कहानी के जरिए ओशो समझाते हैं कि, “व्यक्ति ब्रह्म की इच्छा के अतिरिक्त कुछ नहीं कर सकता, लेकिन उसे लड़ने की स्वतंत्रता अवश्य है। वह इस स्वतंत्रता का उपयोग करके खुद को चिंता और तनाव में डाल सकता है। जो ब्रह्म के प्रवाह में बहता है, उसे आनंद मिलता है, जबकि जो उससे लड़ता है, उसे केवल पीड़ा और संताप मिलता है।”
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सीख जो हमे ओशो की शिक्षाप्रद कहानी से मिलती है-
ये कहानी इस बात का संदेश देती है कि जो जीवन हम जी रहे हैं इसकी बागडोर हमेशा ऊपरवाले के हाथ में होती है। हम भले ही इस बात पर कितनी ही बहस कर लें कि ये जीवन हमारी सोच की उपज से बना है, लेकिन ऐसा नहीं है।
अगर गहराई से ये बात सोचें कि जो हम करते हैं या कर रहे हैं, वो हम क्यों कर रहे हैं, हम सभी जानते हैं कि एक दिन सबको मरना है फिर इस जीवन में मुसीबतें मोल लेकर हम क्यों कुछ न कुछ करने में लगे रहते हैं। इसकी वजह यही है कि ये जीवन ब्रह्म (ईश्वर) की इच्छा के अनुसार चलता है।
हर किसी के जीवन का एक उद्देश्य है और उस उद्देश्य के पूरा होने तक हम इस संसार की पीड़ा, दुख, दर्द, खुशियां हर चीज का अनुभव करते हैं। जीवन को सहजता से स्वीकारना ही सच्ची शांति और खुशी का मार्ग है।”
आशा करता हूँ Osho story in Hindi के जरिए आपको कुछ अच्छा सीखने को मिला हो। ऐसी ही और भी stories पढ़ने के लिए इस ब्लॉग को फॉलो ज़रूर करें।